एक समय की बात है, एक मुर्गी खाने में एक लाल मुर्गी रहती थी उसने अपना घर खुद बनाया था। वह दिन रात महेनत कर के अपना खाना खुद हे जमा करती थी।
वह मुर्गी बोहोत हे महेनति थी, उसके घर के पास जो तालाब था।उसके क़रीब के एक चालक लॉबी अपने बीवी के साथ रहता था। वह बोहोत हे चालक था हमेशा अपने बीवी को खुश रखने के लिए अच्छा खाने का शिकार करता था।
लॉबी और उसके बीवी की नज़र हमेशा वह लाल मुर्गी पे पड़ी रहती लॉबी जब भी वह लाल मुर्गी देखता तोह उसके दिमाग में एक हे बात घूमती यह लाल मुर्गी बड़ी स्वादिष्ट होगी।
में मेरी बीवी को यह तोफाइ में देना चहता हु फिर हम इस मुर्गी को पकायेगे बड़े बर्तन में ऐसे हे।
एक दिन लोमड़ी ने अपना बाजार का थैला उठाया और अपने बीवी से कहा में उस लाल मुर्गी को पकड़ ने जा रहा हु आज रात को हम उस मुर्गी को खाएगे उसे पकाने की तैयारी करो और बड़े से बर्तन में पानी उबालो तब तक में वापस आता हु बीवी से यह बात कह कर लॉबी उस लाल मुर्गी के घर के पास चला गया।
लॉबी की बीवी बोहोत खुश थी और उसने मुर्गी को पकाने के लिए बड़ी से कढाई निकली उस में पानी और मसाला डाल कर पानी को उबालने के लिए रख दिया उसे वक़्त वह लाल मुर्गी अपने घर से बहार निकली और रात के लिए खाना जुटाने में लग गयी।
उसने चालाक लोमड़ी को पेड़ के पीछे छुपा हुआ नहीं देखा लाल मुर्गी खाना खोजते खोजते घर से दूर चली गई लोमड़ी ने सोचा की यही मोखा है और वह तुरंत मुर्गी के घर के अन्धेर घुस गया लोमड़ी ने पूरी तैयारी कर थी।
की वह लाल मुर्गी के लौटने के बाद वह उसे कैसे पकड़ेगा कुछ हे देर बाद वह लाल मुर्गी अपने रात के खाने की थैली ले कर वापस लौटी उसने घर में घुस कर घर का दरवाज़ा बंद किया जैसे हे लोमड़ी ने देखा की मुर्गी के भागने के सारे रास्ते बंद हो गई है।
तब वह मुर्गी को पकड़ने के लिए उस पर टूट पढ़ा मुर्गी ने लोमड़ी के साथ बोहोत हिम्मत से लड़ाई की मुर्गी ने झट से अपनी थैली नीचे छोड़ी और वह उड़ कर एक लकड़ी के ऊपर जा कर बैठ गयी।
मुर्गी ने बैठ कर सांस ली और लोमड़ी से उसने कहा ओह चालाक लोमड़ी तुम मेरे घर के अन्धेर क्या कर रहे हो तुम कितनी भी कोशिश कर लो मुझे पकड़ नहीं पाओगी।
तुम कितनी देर तक मुझ से बचने की कोशिश करती रहोगी लोमड़ी ने देखा की शायद अभी मुर्गी को पकड़ना मुमकिन नहीं है यह मुर्गी बोहोत हुशियार है बोहोत फुर्तीले भी है पर लोमड़ी भी बोहोत चालाक है।
लोमड़ी ने एक पल के लिए सोचा और उसने झट से अपने दिमाग में योजना बनाई और उसने कहा में और मेरी पत्नी तुम्हे पकड़ के रात को खाना छते थे में मेरी पत्नी को निराश नहीं कर सख्ता मुर्गी जहाँ ऊपर खड़ी थी।
उसे के सामने नीचे जा कर वह लोमड़ी जा कर खड़ा हो गया और वह गोल गोल गोल वोही घूमने लगा वह अपनी पूंछ को पकड़ने की कोशिश कर रहा था।
मुर्गी सब कुछ ऊपर से देख रही थी और वह सोचने लगी ऐसे तोह लोमड़ी थक जाएंगे लोमड़ी और तीज़ अपनी पूँछ को पकड़ने के लिए गोल गोल घूमने लगा मुर्गी दायाँ से उस लोमड़ी की हरकती देख रही थी पर वह समझ नहीं पा रही थी की लोमड़ी आखिर कर क्या रहा है।
लोमड़ी को गोल गोल घूमते देख कर मुर्गी का सर घूमने लगा और वह खुद को संभाल नहीं पायी उसका संतुलन भिगाड गया और वह नीचे लोमड़ी के ठेले में जा गिर्री लोमड़ी ने ठेले को अपने कंधे पर उतःया और वह तालाब की ओर चलने लगा लोमड़ी बोहोत खुश हो गया।
उसने सोचा की मुर्गी कितनी स्वादिष्ट होगी लोमड़ी धीरे धीरे तालाब की ओर बढ़ रहा था क्यों की मुर्गी को पकड़ने में उसके बोहोत महेनत लगी थी वह बोहोत थक चुका था उसकी हालत ख़राब हो चुकी थी वह एक भी कदम नहीं चल पा रहा था।
और उसने सोचा लगता है रात होने में अभी काफी समय है में थोड़ा आराम करता हु लोमड़ी ने ठेले को बड़े से पत्थर के पास रक् दिया और वह पत्थर पर जा कर सो गया।
बोहोत जल्दी उसे नींद आगयी लाल मुर्गी ने अपना दिमाग लगाया और वह ठेले के बहार आगयी बहार आकर उसने लोमड़ी को सोती देखा और वह आश्चर्य में पड़ गयी लाल मुर्गी बोहोत हे हिम्मत वाले थे उसने हिम्मत जुटा कर बड़े बड़े पत्थर उस ठेले से बंद दिया और फिर जितनी जल्दी हो सखे वह अपने घर चली गयी।
लोमड़ी की नींद टूटी वह उठा लेकिन उसे कुछ भी पता नहीं चला उसने ठेले को अपने कंधे पर उठाया और तालाब की ओर चल पढ़ा लोमड़ी की बीवी ने उसे देखा और कहा तोह तुम लाल मुर्गी को ले आये हाँ हाँ क्या पानी गरम हो गया।
लोमड़ी की बीवी ने अपने मुंह से उस ठेले को खोला और उस ठेले को कढ़ाई में पलट दिया सारे पत्थर उस गरम पानी में गिरने लगे खोलता पानी लोमड़ी और उसके बीवी पर भी गिरा और वह दोनों की मौत हो गई लाल मुर्गी ने फिर कभी उस चालाक लोमड़ी को नहीं देखा और वह ख़ुशी ख़ुशी शांति से अपना जीवन बिताने लगी
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